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ख़्यालों का शहर

*ख़्यालों का शहर*
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ख़्यालों का हमनें बनाया शहर 
ख़्यालों में हमने बसाया शहर 
जहां सुख की बारिश जलाती है ग़म को 
यहां लेके आती खुशी दोपहर।
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यहां पर दुआओं के साएं है ठहरें 
मुहब्बत पे लगते नहीं कोई पहरें 
जहां चैन से सोती है सारी रातें 
है फिर रोज़ आती उम्मीदों की सहरें
दुआ है किसी की लगे ना नज़र।
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यहां कोई भूखा या नंगा नहीं है
यहां मज़हबी कोई दंगा नहीं है
यहीं पास मे आब-ए-ज़मज़म है मिलता
यहां मैली यमुना या गंगा नहीं है
मेहरबाँ है कुदरत, ना ढाती क़हर।
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फ़राज़ (क़लमदराज़)
S.N.Siddiqui
@seen_9807

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4 Comments

बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Abhinav ji

15-Jul-2023 07:34 AM

Very nice 👍

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Reena yadav

14-Jul-2023 09:03 PM

👍👍

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